CrPC में पुनरीक्षण (Revision), अपील (Appeal) और पुनर्विचार (Review) की प्रक्रिया:
एक समालोचनात्मक अध्ययन
विषय: दण्ड प्रक्रिया संहिता | भाषा: हिन्दी
1. भूमिका
भारतीय दण्ड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के अंतर्गत अपील, पुनरीक्षण और पुनर्विचार जैसी व्यवस्थाएँ न्यायिक प्रक्रिया में त्रुटियों को सुधारने के उद्देश्य से विकसित की गई हैं। यह लेख इन तीनों की प्रकृति, प्रक्रिया और परस्पर भिन्नताओं का विश्लेषण करता है।
2. अपील (Appeal)
CrPC की धारा 372 से 394 तक अपील की विस्तृत प्रक्रिया दी गई है। यह एक विधिक अधिकार है, जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति किसी निर्णय को उच्च न्यायालय में चुनौती दे सकता है।
- आरोपी द्वारा सजा के विरुद्ध
- शिकायतकर्ता द्वारा दोषमुक्ति के विरुद्ध
- राज्य द्वारा दोषमुक्ति पर अपील
- सजा की मात्रा बढ़ाने या घटाने हेतु
महत्वपूर्ण केस:
अपील का अधिकार CrPC द्वारा नियंत्रित होता है, यह मौलिक अधिकार नहीं है।
3. पुनरीक्षण (Revision)
CrPC की धारा 397–401 में High Court या Session Court को यह शक्ति दी गई है कि वे निचली अदालत के निर्णय या रिकॉर्ड की समीक्षा कर सकते हैं, विशेषकर तब जब वहां कोई गंभीर न्यायिक त्रुटि हो।
- Interlocutory आदेश पर Revision नहीं (धारा 397(2))
- Session Court के पास भी यह शक्ति है (धारा 399)
- High Court के पास Superintendence और Inherent Powers होती हैं
महत्वपूर्ण केस:
पुनरीक्षण का प्रयोजन न्यायिक अनुशासन बनाए रखना है, न कि नया ट्रायल करना।
4. पुनर्विचार (Review)
CrPC में पुनर्विचार का सीधा प्रावधान नहीं है। हालांकि, धारा 362 में कहा गया है कि कोई भी न्यायालय अपने अंतिम निर्णय या आदेश को परिवर्तित नहीं कर सकता, सिवाय टाइपिंग/रजिस्ट्रेशन त्रुटियों को छोड़कर।
Review की अवधारणा Supreme Court के अनुच्छेद 137 और High Court के अंतर्गत संविधान से आती है।
5. तुलनात्मक तालिका
| विशेषता | अपील | पुनरीक्षण | पुनर्विचार |
|---|---|---|---|
| धारा | 372–394 | 397–401 | 362 / Article 137 |
| उद्देश्य | पूर्ण पुनरावलोकन | न्यायिक त्रुटियों का सुधार | मूल्यांकन में न्यायसंगत सुधार |
| कौन कर सकता है | आरोपी/शिकायतकर्ता/राज्य | पक्षकार/न्यायालय स्वतः | न्यायालय स्वयं/पक्षकार |
| उपयोगिता | निर्णय के विरुद्ध | प्रक्रियात्मक या न्यायिक त्रुटि | न्यायिक पुनर्परीक्षण |
6. निष्कर्ष
तीनों विधिक प्रक्रियाएँ — अपील, पुनरीक्षण और पुनर्विचार — न्याय व्यवस्था की रीढ़ हैं। इनका सही प्रयोग न केवल न्याय दिलाने में सहायक होता है बल्कि आम जनता का न्यायपालिका में विश्वास भी मज़बूत करता है।
- Revision और Appeal के बीच स्पष्ट निर्देश होना चाहिए
- Review हेतु विशेष विधिक दिशा-निर्देश विकसित हों
- District न्यायालयों को उचित प्रशिक्षण प्रदान किया जाए
अस्वीकरण: यह लेख केवल शैक्षणिक उद्देश्य हेतु है। कृपया विधिक सलाह हेतु अधिवक्ता से संपर्क करें।