indian constitution article 245 to 395

भारतीय संविधान (भाग 11-22) – अनुच्छेद और ऐतिहासिक निर्णय (indian constitution article 245 to 395)

भारतीय संविधान - विस्तृत विश्लेषण (भाग 11 से 22)

भाग 11: संघ और राज्यों के बीच संबंध (अनुच्छेद 245-263)
  • अनुच्छेद 245: संसद और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाई गई विधियों का विस्तार
    यह अनुच्छेद विधायी शक्तियों के वितरण का आधार है, जिसमें बताया गया है कि संसद पूरे भारत के लिए और राज्य अपने क्षेत्र के लिए कानून बना सकते हैं।
  • अनुच्छेद 246: सातवीं अनुसूची (संघ सूची, राज्य सूची, समवर्ती सूची)
    यह अनुच्छेद तीन सूचियों के माध्यम से केंद्र और राज्यों के बीच विधायी विषयों का स्पष्ट विभाजन करता है।
  • अनुच्छेद 254: संसद द्वारा बनाई गई विधियों और राज्यों के विधानमंडलों द्वारा बनाई गई विधियों में असंगति
    यदि समवर्ती सूची के किसी विषय पर केंद्र और राज्य के कानून में टकराव होता है, तो केंद्र का कानून मान्य होगा।
    प्रमुख केस: एम. करुणानिधि बनाम भारत संघ (1979) - इस मामले में टकराव के सिद्धांत की व्याख्या की गई।
  • अनुच्छेद 256-263: प्रशासनिक संबंध
    यह केंद्र और राज्यों के बीच प्रशासनिक संबंधों, जैसे राज्यों को निर्देश देने की केंद्र की शक्ति और अखिल भारतीय सेवाओं (अनु. 312) की भूमिका को परिभाषित करता है।
भाग 12: वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद (अनुच्छेद 264-300A)
  • अनुच्छेद 265: विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना
    सरकार कोई भी कर बिना कानून बनाए नहीं लगा सकती।
  • अनुच्छेद 266: भारत और राज्यों की संचित निधियां और लोक लेखे
    सरकार का सारा राजस्व इसी निधि में जमा होता है और सभी खर्चे यहीं से किए जाते हैं।
  • अनुच्छेद 267: आकस्मिकता निधि (Contingency Fund)
    अप्रत्याशित खर्चों को पूरा करने के लिए राष्ट्रपति या राज्यपाल के अधीन एक निधि।
  • अनुच्छेद 280: वित्त आयोग (Finance Commission)
    यह एक संवैधानिक निकाय है जो केंद्र और राज्यों के बीच करों के बंटवारे की सिफारिश करता है।
  • अनुच्छेद 300A: विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों को संपत्ति से वंचित न किया जाना
    संपत्ति का अधिकार अब एक मौलिक अधिकार नहीं है (44वें संशोधन द्वारा), लेकिन यह अभी भी एक संवैधानिक/कानूनी अधिकार है। सरकार कानून की प्रक्रिया के बिना किसी को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं कर सकती।
भाग 13 & 14: व्यापार और सेवाएं (अनुच्छेद 301-323)
  • अनुच्छेद 301: भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर व्यापार, वाणिज्य और समागम की स्वतंत्रता
    पूरे देश में व्यापार और वाणिज्य पर कोई प्रतिबंध नहीं होगा, हालांकि जनहित में उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
  • अनुच्छेद 309-311: संघ या राज्य की सेवा करने वाले व्यक्तियों की भर्ती और सेवा की शर्तें
    अनुच्छेद 311 सरकारी कर्मचारियों को पद से मनमाने ढंग से हटाए जाने के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 312: अखिल भारतीय सेवाएं (All-India Services)
    IAS, IPS और IFS जैसी सेवाओं का सृजन।
  • अनुच्छेद 315-323: लोक सेवा आयोग (Public Service Commissions)
    संघ के लिए UPSC और राज्यों के लिए राज्य लोक सेवा आयोग की स्थापना।
भाग 14A, 15 & 16: अधिकरण, निर्वाचन और विशेष उपबंध
  • भाग 14A (अनुच्छेद 323A-323B): अधिकरण (Tribunals)
    42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया, यह प्रशासनिक और अन्य मामलों के लिए विशेष न्यायाधिकरणों की स्थापना की अनुमति देता है।
    प्रमुख केस: एल. चंद्र कुमार बनाम भारत संघ (1997) - कोर्ट ने कहा कि अधिकरण के निर्णय उच्च न्यायालय की न्यायिक समीक्षा के अधीन होंगे।
  • भाग 15 (अनुच्छेद 324-329A): निर्वाचन (Elections)
    अनुच्छेद 324 भारत के निर्वाचन आयोग की स्थापना करता है, जो स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है।
  • भाग 16 (अनुच्छेद 330-342): कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध
    लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों (SC) और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए सीटों का आरक्षण।
भाग 17 & 18: राजभाषा और आपात उपबंध (अनुच्छेद 343-360)
  • भाग 17 (अनुच्छेद 343-351): राजभाषा (Official Language)
    अनुच्छेद 343 संघ की राजभाषा के रूप में देवनागरी लिपि में हिंदी को घोषित करता है।
  • अनुच्छेद 352: राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा (National Emergency)
    युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं।
    प्रमुख केस: मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980) - कोर्ट ने आपातकालीन शक्तियों की न्यायिक समीक्षा का अधिकार स्थापित किया।
  • अनुच्छेद 356: राज्यों में सांविधानिक तंत्र के विफल हो जाने की दशा में उपबंध (राष्ट्रपति शासन)
    यदि किसी राज्य का शासन संविधान के अनुसार नहीं चल सकता है, तो राष्ट्रपति वहां राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं।
    प्रमुख केस: एस. आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994) - इस मामले ने अनुच्छेद 356 के मनमाने उपयोग पर महत्वपूर्ण सीमाएं लगाईं।
  • अनुच्छेद 360: वित्तीय आपात के बारे में उपबंध (Financial Emergency)
    जब भारत की वित्तीय स्थिरता खतरे में हो, तो राष्ट्रपति वित्तीय आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं (आज तक लागू नहीं हुआ)।
भाग 19, 20, 21 & 22: प्रकीर्ण, संशोधन और अन्य
  • भाग 19 (अनुच्छेद 361-367): प्रकीर्ण (Miscellaneous)
    इसमें राष्ट्रपति और राज्यपालों को कानूनी कार्यवाही से संरक्षण जैसे विविध विषय शामिल हैं।
  • अनुच्छेद 368: संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया
    यह अनुच्छेद संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति देता है। संशोधन तीन प्रकार से हो सकते हैं: साधारण बहुमत, विशेष बहुमत, और विशेष बहुमत के साथ आधे राज्यों का अनुसमर्थन।
    प्रमुख केस: गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य (1967) - इस मामले ने कहा कि संसद मौलिक अधिकारों में संशोधन नहीं कर सकती, जिसे बाद में केशवानंद भारती मामले में पलट दिया गया।
  • भाग 21 (अनुच्छेद 369-392): अस्थायी, संक्रमणकालीन और विशेष उपबंध
    इसमें अनुच्छेद 370 (जम्मू और कश्मीर के संबंध में, अब निष्क्रिय) और पूर्वोत्तर राज्यों के लिए विशेष उपबंध शामिल थे।
  • भाग 22 (अनुच्छेद 393-395): संक्षिप्त नाम, प्रारंभ और निरसन
    यह संविधान का संक्षिप्त नाम 'भारत का संविधान' बताता है और भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 को निरस्त करता है।
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