घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 (PWDVA)(Domestic violence section proceedings)
एक संपूर्ण और गहन विश्लेषण
अधिनियम की प्रकृति: यह एक सिविल कानून है, जिसका मुख्य उद्देश्य महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाना और उन्हें तत्काल राहत (जैसे रहने का अधिकार, आर्थिक सहायता) प्रदान करना है, न कि प्रतिवादी को तुरंत जेल भेजना। हालांकि, इसके तहत दिए गए आदेशों का उल्लंघन करना एक आपराधिक अपराध है।
अध्याय 1: प्रारंभिक (धारा 1-2)
- धारा 2(f): घरेलू संबंध (Domestic Relationship) दो व्यक्तियों के बीच संबंध जो एक साझे घर में रहते हैं या कभी भी रह चुके हैं, और वे विवाह, रक्त संबंध, दत्तक ग्रहण या 'विवाह की प्रकृति' (जैसे लिव-इन) वाले संबंध से जुड़े हैं।प्रमुख केस: इंद्रा सरमा बनाम वी.के.वी. सरमा (2013) - सुप्रीम कोर्ट ने 'विवाह की प्रकृति' वाले संबंधों को समझने के लिए दिशानिर्देश दिए।
- धारा 2(q): प्रतिवादी (Respondent) कोई भी व्यक्ति (पुरुष या महिला) जो व्यथित व्यक्ति के साथ घरेलू संबंध में है और जिसके खिलाफ राहत का दावा किया गया है।प्रमुख केस: हीरल पी. हरसोरा बनाम कुसुम नरोत्तमदास हरसोरा (2016) - सुप्रीम कोर्ट ने 'वयस्क पुरुष' शब्द को असंवैधानिक करार दिया। अब प्रतिवादी कोई भी रिश्तेदार (सास, ननद, पति) हो सकता है।
- धारा 2(s): साझा गृहस्थी (Shared Household) यह वह घर है जहाँ महिला घरेलू संबंध में रहती है या रह चुकी है। यह घर पति के स्वामित्व में हो भी सकता है और नहीं भी।प्रमुख केस: सतीश चंदर आहूजा बनाम स्नेहा आहूजा (2020) - इस ऐतिहासिक फैसले ने एस.आर. बत्रा बनाम तरुणा बत्रा के पुराने फैसले को पलट दिया और कहा कि महिला को 'साझा गृहस्थी' में रहने का अधिकार है, भले ही वह घर केवल उसके पति के नाम पर न हो, बल्कि किसी संयुक्त परिवार या ससुराल वालों के नाम पर हो।
अध्याय 2 & 3: घरेलू हिंसा और संबंधित अधिकारी (धारा 3-11)
- धारा 3: घरेलू हिंसा की परिभाषा इसमें शारीरिक, यौन, मौखिक, भावनात्मक और आर्थिक दुर्व्यवहार शामिल है। यह एक बहुत व्यापक परिभाषा है।
- धारा 8, 9: संरक्षण अधिकारी (Protection Officer) इनका मुख्य काम पीड़ित महिला और न्यायालय के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करना, घरेलू घटना रिपोर्ट (DIR) बनाना, और महिला को कानूनी व अन्य सहायता दिलाना है।
अध्याय 4: उपलब्ध राहतें और प्रक्रिया (धारा 12-29)
- धारा 12: मजिस्ट्रेट को आवेदन पीड़ित महिला स्वयं, या संरक्षण अधिकारी, या कोई अन्य व्यक्ति उसकी ओर से, राहत के लिए प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है।
- धारा 18: संरक्षण आदेश (Protection Order) न्यायालय प्रतिवादी को घरेलू हिंसा करने, कार्यस्थल पर जाने, या संपर्क करने से रोक सकता है।
- धारा 19: निवास आदेश (Residence Order) न्यायालय महिला को साझा घर से निकालने पर रोक लगा सकता है, या प्रतिवादी को उस घर से बाहर जाने का आदेश दे सकता है।
- धारा 20: धनीय अनुतोष (Monetary Relief) न्यायालय भरण-पोषण, चिकित्सा व्यय और कमाई की हानि के लिए आदेश दे सकता है।
- धारा 21: अभिरक्षा आदेश (Custody Order) न्यायालय बच्चों की अस्थायी अभिरक्षा मां को सौंप सकता है।
- धारा 22: प्रतिकर आदेश (Compensation Order) मानसिक और शारीरिक पीड़ा के लिए एकमुश्त मुआवजा।
- धारा 23: एकपक्षीय अंतरिम आदेश (Ex-parte Interim Order) तत्काल खतरे की आशंका पर, न्यायालय प्रतिवादी को सुने बिना भी, तुरंत एकतरफा संरक्षण या निवास आदेश पारित कर सकता है।
संपूर्ण न्यायिक प्रक्रिया (केस शुरू होने से आदेश तक)
- चरण 1: हिंसा की सूचना देनापीड़ित महिला पुलिस (112), महिला हेल्पलाइन (181), संरक्षण अधिकारी (PO), या किसी सेवा प्रदाता (NGO) से संपर्क कर सकती है।
- चरण 2: आवेदन दाखिल करना (धारा 12)संरक्षण अधिकारी या वकील की मदद से, महिला एक निर्धारित प्रारूप में मजिस्ट्रेट के समक्ष राहत के लिए आवेदन करती है। इसके साथ एक हलफनामा (affidavit) भी दिया जाता है।
- चरण 3: घरेलू घटना रिपोर्ट (DIR)आवेदन मिलने पर, मजिस्ट्रेट संरक्षण अधिकारी को घटना की विस्तृत रिपोर्ट (DIR) दाखिल करने का निर्देश दे सकता है। यह रिपोर्ट मामले को समझने में न्यायालय की मदद करती है।
- चरण 4: नोटिस जारी करना (धारा 13)न्यायालय प्रतिवादी (पति/रिश्तेदार) को नोटिस जारी करता है और उसे सुनवाई की तारीख पर उपस्थित होने का निर्देश देता है।
- चरण 5: पहली सुनवाई और परामर्श (धारा 12, 14)कानूनन पहली सुनवाई नोटिस के 3 दिनों के भीतर होनी चाहिए। मजिस्ट्रेट यदि उचित समझे तो दोनों पक्षों को परामर्श (counselling) के लिए भेज सकता है।
- चरण 6: प्रतिवादी का जवाबप्रतिवादी नोटिस मिलने के बाद अपना लिखित जवाब (written statement) दाखिल करता है, जिसमें वह लगाए गए आरोपों का उत्तर देता है।
- चरण 7: अंतरिम राहत (धारा 23)केस चलने के दौरान, महिला की तत्काल सुरक्षा के लिए न्यायालय एक अंतरिम (interim) आदेश पारित कर सकता है, जैसे रहने के अधिकार या खर्चे के लिए। यदि खतरा गंभीर हो तो यह आदेश एकतरफा (ex-parte) भी हो सकता है।
- चरण 8: साक्ष्य और बहसदोनों पक्ष अपने दावों के समर्थन में हलफनामे और सबूत (दस्तावेज, फोटो, आदि) पेश करते हैं। इसके बाद दोनों पक्षों के वकील अंतिम बहस करते हैं।
- चरण 9: अंतिम आदेशसभी सबूतों और तर्कों को सुनने के बाद, न्यायालय मामले का निपटारा करते हुए अंतिम आदेश पारित करता है, जिसमें धारा 18 से 22 तक की कोई भी राहत शामिल हो सकती है। कानून के अनुसार यह पूरी प्रक्रिया 60 दिनों में पूरी होनी चाहिए।
- चरण 10: अपील (धारा 29)मजिस्ट्रेट के आदेश से असंतुष्ट कोई भी पक्ष 30 दिनों के भीतर सेशन न्यायालय में अपील कर सकता है।
आदेशों का निष्पादन (Execution) - राहत कैसे लागू करवाएं?
- न्यायालय का आदेश मिलना एक बात है, और उसे लागू करवाना दूसरी। PWDVA में आदेशों को लागू करवाने के लिए दो मुख्य तरीके दिए गए हैं:
- 1. संरक्षण आदेश का उल्लंघन: एक आपराधिक कार्यवाही (धारा 31, 32)
प्रक्रिया: यदि प्रतिवादी संरक्षण आदेश (धारा 18) या निवास आदेश (धारा 19) का उल्लंघन करता है (जैसे घर से निकालने की धमकी देना, संपर्क करना), तो यह एक आपराधिक अपराध है।
क्या करें: पीड़ित महिला को तुरंत पुलिस या संरक्षण अधिकारी को सूचित करना चाहिए।
पुलिस की भूमिका: धारा 32 के अनुसार, यह अपराध **संज्ञेय (cognizable) और अजमानतीय (non-bailable)** है। पुलिस बिना वारंट के प्रतिवादी को गिरफ्तार कर सकती है और उसी मजिस्ट्रेट के सामने एक नया आपराधिक मामला शुरू कर सकती है।
दण्ड (धारा 31): दोष सिद्ध होने पर प्रतिवादी को **1 वर्ष तक का कारावास, या ₹20,000 तक का जुर्माना, या दोनों** हो सकता है। - 2. धनीय अनुतोष का निष्पादन: एक सिविल प्रक्रिया (धारा 20)
प्रक्रिया: यदि प्रतिवादी धनीय अनुतोष (भरण-पोषण, मुआवजा) (धारा 20, 22) का भुगतान नहीं करता है।
क्या करें: पीड़ित महिला को उसी मजिस्ट्रेट के समक्ष एक निष्पादन याचिका (Execution Petition) दायर करनी होगी।
न्यायालय की शक्ति: न्यायालय **CrPC की धारा 125** में दी गई प्रक्रिया का पालन करेगा। इसका मतलब है:- (a) वसूली वारंट: न्यायालय प्रतिवादी की चल या अचल संपत्ति को कुर्क करने और बेचने (attachment and sale) के लिए वारंट जारी कर सकता है ताकि बकाया राशि की वसूली हो सके।
- (b) गिरफ्तारी और कारावास: यदि वारंट के बाद भी राशि का भुगतान नहीं होता है, तो न्यायालय प्रतिवादी को हर महीने के बकाए के लिए **एक महीने तक के कारावास** की सजा दे सकता है (या जब तक कि वह भुगतान न कर दे)।
- 3. पुलिस और अन्य अधिकारियों की भूमिका (धारा 24)न्यायालय अपने द्वारा पारित किसी भी आदेश की एक प्रति उस पुलिस थाने के भारसाधक अधिकारी को भेजेगा जिसकी अधिकारिता में प्रतिवादी रहता है, ताकि पुलिस आदेश को लागू कराने में मदद कर सके।
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