indian constitution article 1 to 244 a

भारतीय संविधान (भाग 1-10) – अनुच्छेद, परिभाषा और ऐतिहासिक निर्णय (indian constitution article 1 to 244 a)

भारतीय संविधान - विस्तृत विश्लेषण (भाग 1 से 10)

भाग 1: संघ और उसका राज्यक्षेत्र (अनुच्छेद 1-4)
  • अनुच्छेद 1: संघ का नाम और राज्यक्षेत्र
    यह अनुच्छेद भारत को 'राज्यों के संघ' (Union of States) के रूप में परिभाषित करता है। इसका मतलब है कि भारतीय संघ राज्यों के बीच किसी समझौते का परिणाम नहीं है, और किसी भी राज्य को संघ से अलग होने का अधिकार नहीं है।
  • अनुच्छेद 2 व 3: नए राज्यों का निर्माण और परिवर्तन
    ये अनुच्छेद संसद को साधारण बहुमत से नए राज्यों को संघ में शामिल करने (अनु. 2) और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों को बदलने (अनु. 3) की असाधारण शक्ति देते हैं। इसके लिए संविधान संशोधन की आवश्यकता नहीं होती।
    प्रमुख केस: बेरुबारी संघ मामला (1960) - इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि भारत अपना कोई क्षेत्र किसी अन्य देश को सौंपता है, तो उसके लिए अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन आवश्यक होगा।
भाग 2: नागरिकता (अनुच्छेद 5-11)
  • अनुच्छेद 5-10: संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता
    ये अनुच्छेद विस्तार से बताते हैं कि 26 जनवरी, 1950 को कौन व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाएगा, जिसमें भारत में अधिवास, पाकिस्तान से प्रवासन, और विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के लोग शामिल थे।
  • अनुच्छेद 11: संसद द्वारा नागरिकता का विनियमन
    यह एक अत्यंत महत्वपूर्ण अनुच्छेद है जो भविष्य में नागरिकता प्राप्त करने, समाप्त करने और नागरिकता से संबंधित किसी भी अन्य विषय पर कानून बनाने का एकमात्र और पूर्ण अधिकार भारत की संसद को देता है। इसी शक्ति का प्रयोग करके संसद ने 'नागरिकता अधिनियम, 1955' बनाया है।
भाग 3: मूल अधिकार (Fundamental Rights) (अनुच्छेद 12-35)
  • अनुच्छेद 12: 'राज्य' की परिभाषा
    मूल अधिकारों के संदर्भ में 'राज्य' की परिभाषा बहुत व्यापक है। इसमें केंद्र सरकार और संसद, राज्य सरकारें और विधानमंडल, और सभी स्थानीय (जैसे नगरपालिका, पंचायत) या अन्य प्राधिकरण (जैसे LIC, ONGC) शामिल हैं। यह परिभाषा सुनिश्चित करती है कि नागरिकों के अधिकार इन सभी निकायों के विरुद्ध लागू हों।
  • अनुच्छेद 13: न्यायिक समीक्षा का आधार
    यह अनुच्छेद घोषित करता है कि कोई भी कानून (चाहे वह संविधान से पहले का हो या बाद का), जो मूल अधिकारों का उल्लंघन करता है, उस उल्लंघन की सीमा तक शून्य (void) होगा। यह न्यायालयों को 'न्यायिक समीक्षा' (Judicial Review) की शक्ति प्रदान करता है और संविधान की सर्वोच्चता स्थापित करता है।
    प्रमुख केस: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) - इस ऐतिहासिक मामले ने 'संविधान के मूल ढांचे' (Basic Structure Doctrine) का सिद्धांत स्थापित किया, जिसे संसद भी अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित नहीं कर सकती।
  • अनुच्छेद 14: विधि के समक्ष समता और विधियों का समान संरक्षण
    यह अनुच्छेद दो अवधारणाएं प्रस्तुत करता है: 'विधि के समक्ष समता' (ब्रिटिश अवधारणा) का अर्थ है कि कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है, और 'विधियों का समान संरक्षण' (अमेरिकी अवधारणा) का अर्थ है कि समान परिस्थितियों में सभी के साथ समान व्यवहार किया जाएगा। यह मनमानेपन (Arbitrariness) का निषेध करता है।
    प्रमुख केस: ई.पी. रोयप्पा बनाम तमिलनाडु राज्य (1974) - इस मामले में कहा गया कि 'समानता एक गतिशील अवधारणा है और यह मनमानेपन की कट्टर दुश्मन है'।
  • अनुच्छेद 15: भेदभाव का प्रतिषेध
    अनु. 15(1) राज्य को किसी भी नागरिक के खिलाफ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है। वहीं, अनु. 15(3) और 15(4) राज्य को महिलाओं, बच्चों और सामाजिक/शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देते हैं।
  • अनुच्छेद 16: लोक नियोजन में अवसर की समता
    सभी नागरिकों को सरकारी नौकरियों और पदों पर नियुक्ति के लिए समान अवसर मिलेगा। अनु. 16(4) राज्य को पिछड़े वर्गों के पक्ष में आरक्षण का प्रावधान करने की शक्ति देता है, यदि उनका प्रतिनिधित्व राज्य की सेवाओं में पर्याप्त नहीं है।
    प्रमुख केस: इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992) - इसे 'मंडल केस' के रूप में जाना जाता है, जिसने आरक्षण पर 50% की सीमा और 'क्रीमी लेयर' की अवधारणा स्थापित की।
  • अनुच्छेद 19: छः स्वतंत्रताएं
    यह नागरिकों को 6 मौलिक स्वतंत्रताएं प्रदान करता है: 19(1)(a) वाक् और अभिव्यक्ति, (b) शांतिपूर्ण सभा, (c) संगम या संघ, (d) अबाध संचरण, (e) निवास, और (g) कोई वृत्ति या कारोबार। ये स्वतंत्रताएं पूर्ण नहीं हैं और अनुच्छेद 19(2) से 19(6) में दिए गए उचित प्रतिबंधों (reasonable restrictions) के अधीन हैं।
  • अनुच्छेद 21: प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण
    यह सबसे विस्तृत मूल अधिकार है। न्यायालयों ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा है कि इसका अर्थ केवल जीवित रहना नहीं, बल्कि 'मानवीय गरिमा के साथ जीवन' है। इसकी व्याख्या में स्वच्छ पर्यावरण, निजता, स्वास्थ्य, आश्रय, त्वरित विचारण और निःशुल्क कानूनी सहायता जैसे कई अधिकार शामिल किए गए हैं।
    प्रमुख केस: मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) - इसने 'विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया' की व्याख्या को व्यापक बनाया। और के.एस. पुट्टास्वामी बनाम भारत संघ (2017) - जिसने 'निजता के अधिकार' (Right to Privacy) को अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार घोषित किया।
  • अनुच्छेद 25-28: धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
    ये अनुच्छेद सभी व्यक्तियों को अपने धर्म को मानने, आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता (अनु. 25), धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (अनु. 26), करों से छूट (अनु. 27) और शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा से स्वतंत्रता (अनु. 28) प्रदान करते हैं।
  • अनुच्छेद 32: सांविधानिक उपचारों का अधिकार
    यह नागरिकों को अपने मूल अधिकारों के उल्लंघन पर सीधे उच्चतम न्यायालय जाने का अधिकार देता है। न्यायालय 5 प्रकार की रिट जारी कर सकता है: बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, प्रतिषेध, उत्प्रेषण, और अधिकार-पृच्छा। डॉ. अम्बेडकर ने इसे 'संविधान की आत्मा और हृदय' कहा था।
भाग 4 & 4 A: निदेशक तत्व और मूल कर्तव्य (अनुच्छेद 36-51A)
  • अनुच्छेद 36-51: राज्य की नीति के निदेशक तत्व (DPSP)
    ये वे सिद्धांत हैं जो देश के शासन के लिए मूलभूत हैं और कानून बनाते समय राज्य से इन्हें लागू करने की अपेक्षा की जाती है। ये न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, लेकिन ये देश के लिए सामाजिक-आर्थिक न्याय का लक्ष्य निर्धारित करते हैं।
    प्रमुख केस: मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ (1980) - कोर्ट ने कहा कि मूल अधिकारों और निदेशक तत्वों के बीच संतुलन संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है।
  • अनुच्छेद 44: समान नागरिक संहिता (UCC)
    राज्य भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code) प्राप्त करने का प्रयास करेगा।
    प्रमुख केस: सरला मुद्गल बनाम भारत संघ (1995) - कोर्ट ने विवाह और उत्तराधिकार जैसे मामलों में एक समान कानून की आवश्यकता पर जोर दिया।
  • अनुच्छेद 51A: मूल कर्तव्य (Fundamental Duties)
    42वें संशोधन (1976) द्वारा जोड़े गए, ये नागरिकों के 11 कर्तव्य हैं। ये भी प्रवर्तनीय नहीं हैं, लेकिन नागरिकों के लिए एक नैतिक संहिता के रूप में कार्य करते हैं।
भाग 5: संघ (The Union) (अनुच्छेद 52-151)
  • अनुच्छेद 52-78: कार्यपालिका (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, मंत्रिपरिषद)
    यह संघ की कार्यकारी शक्तियों की संरचना, राष्ट्रपति की शक्तियों (क्षमादान-अनु. 72, सैन्य शक्तियां) और प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद की भूमिका (अनु. 74-75) को परिभाषित करता है।
  • अनुच्छेद 123: राष्ट्रपति की अध्यादेश शक्ति
    जब संसद के दोनों सदन सत्र में न हों, और तत्काल कानून की आवश्यकता हो, तो राष्ट्रपति अध्यादेश जारी कर सकते हैं, जिसका प्रभाव संसद के कानून के बराबर होता है।
    प्रमुख केस: डी.सी. वाधवा बनाम बिहार राज्य (1987) - कोर्ट ने अध्यादेशों को बार-बार जारी करके विधायी प्रक्रिया से बचने को 'संविधान पर धोखाधड़ी' कहा।
  • अनुच्छेद 124, 143: संघ की न्यायपालिका (उच्चतम न्यायालय)
    यह उच्चतम न्यायालय की स्थापना, उसकी शक्तियों (अपीलीय, सलाहकार-अनु. 143), और न्यायाधीशों की नियुक्ति (कॉलेजियम प्रणाली) और निष्कासन की प्रक्रिया निर्धारित करता है।
भाग 6: राज्य (The States) (अनुच्छेद 152-237)
  • अनुच्छेद 153-167: राज्य की कार्यपालिका (राज्यपाल, मंत्रिपरिषद)
    यह राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियों और मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्य मंत्रिपरिषद के कार्यों का वर्णन करता है।
  • अनुच्छेद 213: राज्यपाल की अध्यादेश शक्ति
    यह राज्यपाल को राज्य विधान-मंडल के सत्र में न होने पर अध्यादेश जारी करने की शक्ति देता है।
  • अनुच्छेद 226: रिट जारी करने की उच्च न्यायालय की शक्ति
    उच्च न्यायालय को मूल अधिकारों के साथ-साथ 'किसी अन्य प्रयोजन के लिए' भी रिट जारी करने की शक्ति है, जो इसे अनुच्छेद 32 की तुलना में एक व्यापक अधिकार क्षेत्र प्रदान करती है।
भाग 7, 8, 9, 10: राज्यक्षेत्र और स्थानीय शासन
  • भाग 7 (अनुच्छेद 238): निरस्त (7वें संशोधन द्वारा, 1956)
  • भाग 8 (अनुच्छेद 239-242): संघ राज्यक्षेत्र (Union Territories)
  • भाग 9 (अनुच्छेद 243-243 O): पंचायतें
    73वें संशोधन (1992) द्वारा जोड़ा गया, यह ग्रामीण स्थानीय स्वशासन (पंचायती राज) की त्रि-स्तरीय प्रणाली स्थापित करता है।
  • भाग 9A (अनुच्छेद 243P-243 Z G): नगरपालिकाएं
    74वें संशोधन (1992) द्वारा जोड़ा गया, यह शहरी स्थानीय स्वशासन (नगरपालिका, नगर निगम) की स्थापना करता है।
  • भाग 10 (अनुच्छेद 244-244 A): अनुसूचित और जनजाति क्षेत्र
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