Hindu succession act

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 – संपूर्ण गाइड: सभी धाराएं, संशोधन और ऐतिहासिक निर्णय(Hindu succession act)

हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 (HSA)

एक संपूर्ण और गहन विश्लेषण (2005 संशोधन सहित)

अधिनियम का उद्देश्य: यह कानून निर्वसीयती (बिना वसीयत के) मरने वाले हिंदुओं की संपत्ति के उत्तराधिकार और बंटवारे के नियमों को संहिताबद्ध करता है। इसका सबसे बड़ा क्रांतिकारी कदम 2005 का संशोधन था, जिसने बेटियों को पैतृक संपत्ति में बेटों के बराबर सहदायिक (coparcener) अधिकार दिया।
अध्याय 1: प्रारंभिक (धारा 1-4)
  • धारा 1: संक्षिप्त नाम और विस्तार।
  • धारा 2: अधिनियम का लागू होना
    यह अधिनियम हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों पर लागू होता है।
  • धारा 3: परिभाषाएं
    'गोत्रज' (Agnate), 'बंधु' (Cognate), 'वारिस' (Heir) जैसे शब्दों को परिभाषित करता है।
  • धारा 4: अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव
    यह स्पष्ट करता है कि इस अधिनियम के लागू होने के बाद, उत्तराधिकार से संबंधित सभी पुराने शास्त्र, नियम और प्रथाएं समाप्त हो जाएंगी।
अध्याय 2: निर्वसीयती उत्तराधिकार (धारा 5-29)
  • धारा 5: कुछ संपत्तियों पर अधिनियम का लागू न होना।
  • धारा 6: सहदायिकी संपत्ति में हित का न्यागमन
    2005 संशोधन के बाद (क्रांतिकारी बदलाव): इस धारा ने बेटियों को बेटों के बराबर सहदायिक अधिकार दिया। अब एक सहदायिक की बेटी भी जन्म से ही बेटे की तरह सहदायिक बन जाती है और उसे संपत्ति में बराबर अधिकार और दायित्व प्राप्त होते हैं।
    प्रमुख केस: विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा (2020) - सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि बेटी का सहदायिक अधिकार जन्म से होता है, चाहे उसके पिता 9 सितंबर, 2005 (संशोधन की तारीख) को जीवित थे या नहीं।
  • धारा 7: कुछ अन्य मामलों में उत्तराधिकार।
  • धारा 8: हिन्दू पुरुष की संपत्ति के उत्तराधिकार के नियम
    यह सबसे महत्वपूर्ण धाराओं में से एक है। यह बताता है कि बिना वसीयत के मरने वाले हिन्दू पुरुष की संपत्ति का बंटवारा किस क्रम में होगा: (a) वर्ग-I के वारिस, (b) वर्ग-II के वारिस, (c) गोत्रज, (d) बंधु।
  • धारा 9: वारिसों में उत्तराधिकार का क्रम
    वर्ग-I के वारिस अन्य सभी को बाहर कर देते हैं। वर्ग-II में, पहली प्रविष्टि के वारिस बाद की प्रविष्टियों को बाहर कर देते हैं।
  • धारा 10: वर्ग-I के वारिसों में संपत्ति का वितरण
    यह बताता है कि वर्ग-I के वारिसों के बीच संपत्ति कैसे बांटी जाएगी (जैसे विधवा, माता और प्रत्येक बच्चे को एक हिस्सा)।
  • धारा 11: वर्ग-II के वारिसों में संपत्ति का वितरण।
  • धारा 12: गोत्रजों और बंधुओं में उत्तराधिकार का क्रम।
  • धारा 13: डिग्रियों की संगणना।
  • धारा 14: किसी हिन्दू नारी की संपत्ति उसकी आत्यंतिक संपत्ति होगी
    यह धारा महिलाओं के संपत्ति अधिकारों के लिए एक मील का पत्थर है। इसके अनुसार, किसी भी हिन्दू महिला के कब्जे में कोई भी संपत्ति उसकी पूर्ण स्वामी (absolute owner) के रूप में होगी।
  • धारा 15: हिन्दू नारी की संपत्ति के उत्तराधिकार के नियम
    यह बताता है कि बिना वसीयत के मरने वाली हिन्दू महिला की संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा।
  • धारा 16: धारा 15 में वर्णित वारिसों में उत्तराधिकार का क्रम और वितरण का ढंग।
  • धारा 17: कुछ विशेष मामलों में विशेष प्रावधान।
  • धारा 18: पूर्ण रक्त, अर्ध रक्त पर अधिमान्य है।
  • धारा 19: दो या अधिक वारिसों के उत्तराधिकार का ढंग।
  • धारा 20: गर्भ में बच्चे का अधिकार।
  • धारा 21: एक साथ मरने वालों के बारे में उपधारणा।
  • धारा 22: कुछ मामलों में संपत्ति अर्जित करने का अधिमान्य अधिकार।
  • धारा 23: निवास गृह के संबंध में विशेष उपबंध (निरस्त)
    2005 के संशोधन द्वारा इसे हटा दिया गया, जिससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिला।
  • धारा 24: कुछ विधवाओं के पुनर्विवाह पर अधिकारहीन हो जाना (निरस्त)
    इसे भी 2005 में हटा दिया गया।
  • धारा 25: हत्या करने वाला निर्हकित होगा
    कोई भी व्यक्ति जो हत्या करता है, वह अपने पीड़ित की संपत्ति का वारिस नहीं हो सकता।
  • धारा 26: धर्मपरिवर्तितों के वंशज निर्हकित होंगे।
  • धारा 27: उत्तराधिकार जब वारिस निर्हकित हो।
  • धारा 28: रोग, त्रुटि आदि के आधार पर कोई निर्हकिकता नहीं।
  • धारा 29: वारिसों का अभाव (Escheat)
    यदि किसी व्यक्ति का कोई वारिस नहीं है, तो उसकी संपत्ति सरकार को चली जाती है।
अध्याय 3: वसीयती उत्तराधिकार (धारा 30)
  • धारा 30: वसीयती उत्तराधिकार (Testamentary Succession)
    यह धारा स्पष्ट करती है कि कोई भी हिन्दू अपनी किसी भी संपत्ति के संबंध में वसीयत (Will) बना सकता है, जिसमें सहदायिकी संपत्ति में उसका अविभक्त हित भी शामिल है। यदि कोई व्यक्ति वसीयत बनाकर मरता है, तो उसकी संपत्ति का बंटवारा इस अधिनियम के नियमों के अनुसार नहीं, बल्कि वसीयत के अनुसार होगा।
अध्याय 4: निरसन (धारा 31)
  • धारा 31: निरसन (Repeals)
    यह धारा अब निरस्त हो चुकी है।
अनुसूची: उत्तराधिकारियों का वर्गीकरण
  • वर्ग-I के वारिस (Class-I Heirs)
    ये प्राथमिक उत्तराधिकारी होते हैं और इन्हें संपत्ति में सबसे पहले और बराबर का हिस्सा मिलता है। इनमें शामिल हैं: बेटा, बेटी, विधवा (पत्नी), माता, पूर्व-मृत बेटे का बेटा, पूर्व-मृत बेटे की बेटी, पूर्व-मृत बेटी का बेटा, पूर्व-मृत बेटी की बेटी, पूर्व-मृत बेटे की विधवा, आदि।
  • वर्ग-II के वारिस (Class-II Heirs)
    यदि वर्ग-I का कोई भी वारिस जीवित नहीं है, तो संपत्ति वर्ग-II के वारिसों को मिलती है। इसमें उत्तराधिकार प्रविष्टियों (Entries) के क्रम में होता है। पहली प्रविष्टि में 'पिता' आते हैं।
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