Maintenance (Bharan-Poshan)

भरण-पोषण (Maintenance) का कानून – संपूर्ण गाइड, धाराएं और ऐतिहासिक निर्णय

भरण-पोषण (Maintenance) का कानून: एक संपूर्ण गाइड

भरण-पोषण, जिसे आम भाषा में 'गुजारा भत्ता' भी कहा जाता है, केवल एक आर्थिक सहायता नहीं है, बल्कि यह सामाजिक न्याय और मानवीय गरिमा का एक साधन है। भारतीय कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति, विशेषकर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग माता-पिता, विवाह टूटने या परित्याग के बाद बेसहारा और निराश्रित न रह जाएं। यह कानून किसी को दंडित करने के लिए नहीं, बल्कि समाज के कमजोर सदस्यों को एक सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर प्रदान करने के लिए बनाया गया है।

भरण-पोषण का दावा कौन कर सकता है?

भारतीय कानून के तहत, निम्नलिखित व्यक्ति भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं:

  • पत्नी: वह पत्नी जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है। इसमें तलाकशुदा पत्नी भी शामिल है, जब तक कि वह पुनर्विवाह न कर ले।
  • बच्चे: नाबालिग बच्चे (वैध या अवैध)। वयस्क बच्चे भी यदि वे शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम होने के कारण अपना भरण-पोषण नहीं कर सकते। वयस्क अविवाहित बेटी भी भरण-पोषण का दावा कर सकती है।
  • माता-पिता: वे माता-पिता (पिता या माता) जो अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हैं।

भरण-पोषण के विभिन्न कानूनी प्रावधान

भारत में भरण-पोषण का दावा कई कानूनों के तहत किया जा सकता है। यह पीड़ित की स्थिति और धर्म पर निर्भर करता है।

  • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 125 (CrPC 125): यह सबसे आम, त्वरित और धर्मनिरपेक्ष प्रावधान है। कोई भी महिला, चाहे वह किसी भी धर्म की हो, इस धारा के तहत अपने पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती है। इसका उद्देश्य तत्काल राहत प्रदान करना है।
  • हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 (धारा 24 और 25): यह कानून केवल हिंदुओं पर लागू होता है।
    • धारा 24 (वादकालीन भरण-पोषण): तलाक या अन्य वैवाहिक मामला चलने के दौरान, आर्थिक रूप से कमजोर पक्ष (पति या पत्नी) दूसरे पक्ष से मुकदमे का खर्च और मासिक गुजारा भत्ता मांग सकता है।
    • धारा 25 (स्थायी भरण-पोषण): तलाक की डिक्री के बाद, न्यायालय एक पक्ष को दूसरे पक्ष के लिए स्थायी रूप से एकमुश्त या मासिक गुजारा भत्ता देने का आदेश दे सकता है।
  • घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 (धारा 20): यह कानून घरेलू हिंसा से पीड़ित महिला को 'धनीय अनुतोष' (Monetary Relief) प्रदान करता है, जिसमें भरण-पोषण भी शामिल है। यह अन्य कानूनों के तहत मिलने वाली राहत के अतिरिक्त है।
  • हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956: यह भी हिंदुओं के लिए एक अलग सिविल उपचार प्रदान करता है।

ऐतिहासिक न्यायिक निर्णय जिन्होंने कानून को दिशा दी

सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर भरण-पोषण के कानून की व्याख्या करके इसे और अधिक मानवीय और प्रगतिशील बनाया है।

1. मोहम्मद अहमद खान बनाम शाह बानो बेगम (1985)

ऐतिहासिक महत्व: यह भारत के सबसे चर्चित मामलों में से एक है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि CrPC की धारा 125 एक धर्मनिरपेक्ष कानून है और यह सभी पर लागू होता है, चाहे उनका धर्म कुछ भी हो। कोर्ट ने कहा कि एक मुस्लिम पति अपनी तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता देने के लिए बाध्य है, अगर वह अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है। इस फैसले ने पूरे देश में एक बड़ी बहस छेड़ दी थी।

2. कल्याण डे चौधरी बनाम रीता डे चौधरी (2017)

ऐतिहासिक महत्व: इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भरण-पोषण की राशि तय करने के लिए एक व्यावहारिक दिशानिर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि हालांकि कोई निश्चित फॉर्मूला नहीं है, लेकिन पति के शुद्ध वेतन (Net Salary) का 25% पत्नी के लिए गुजारा भत्ता के रूप में एक "उचित और न्यायसंगत" राशि मानी जा सकती है। यह आज भी कई मामलों में एक मानक के रूप में उपयोग किया जाता है।

3. रजनेश बनाम नेहा (2020)

ऐतिहासिक महत्व: यह भरण-पोषण के मामलों में अब तक का सबसे व्यापक और महत्वपूर्ण निर्णय है। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे भारत के सभी न्यायालयों के लिए विस्तृत दिशानिर्देश जारी किए ताकि प्रक्रिया में एकरूपता लाई जा सके।
मुख्य निर्देश:

  • दोनों पक्षों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का एक विस्तृत हलफनामा (Affidavit of Assets and Liabilities) दाखिल करना अनिवार्य है।
  • भरण-पोषण का आदेश उस तारीख से लागू माना जाएगा जिस तारीख को याचिका दायर की गई थी, न कि जिस तारीख को आदेश दिया गया।
  • विभिन्न कानूनों के तहत प्राप्त भरण-पोषण के आदेशों को समायोजित किया जाना चाहिए ताकि पत्नी को दोहरा लाभ न मिले, लेकिन वह सबसे अधिक लाभकारी आदेश का चयन कर सकती है।

भरण-पोषण की राशि कैसे तय की जाती है?

न्यायालय भरण-पोषण की राशि तय करते समय कोई एक फॉर्मूला नहीं अपनाता, बल्कि कई कारकों पर विचार करता है:

  • दोनों पक्षों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति।
  • पति की आय, संपत्ति और देनदारियां।
  • पत्नी की आवश्यकताएं और उसकी अपनी कोई आय या संपत्ति।
  • विवाह से पहले दोनों पक्ष जिस जीवन स्तर के आदी थे।
  • बच्चों की शिक्षा और अन्य आवश्यकताएं।
  • पति पर आश्रित अन्य लोगों की जिम्मेदारी।

किन परिस्थितियों में पत्नी भरण-पोषण का अधिकार खो सकती है?

CrPC की धारा 125(4) के अनुसार, एक पत्नी निम्नलिखित परिस्थितियों में भरण-पोषण का अधिकार खो सकती है:

  • यदि वह व्यभिचार (Adultery) में रह रही है।
  • यदि वह बिना किसी उचित कारण के अपने पति के साथ रहने से इनकार करती है।
  • यदि वे आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं।

निष्कर्ष

भरण-पोषण का कानून केवल एक वित्तीय लेनदेन नहीं है, बल्कि यह एक सामाजिक सुरक्षा कवच है। यह सुनिश्चित करता है कि विवाह जैसे पवित्र रिश्ते के टूटने पर कोई भी पक्ष, विशेषकर महिलाएं और बच्चे, असहाय और निराश्रित न हों। सुप्रीम कोर्ट ने 'रजनेश बनाम नेहा' जैसे निर्णयों के माध्यम से इस प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी, न्यायसंगत और प्रभावी बनाने का एक सराहनीय प्रयास किया है, ताकि न्याय न केवल हो, बल्कि समय पर हो।

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