अनुच्छेद 370 और 35-A: जम्मू-कश्मीर का संपूर्ण इतिहास (1947 से 2019 तक)
यह मुद्दा थोड़ा जटिल है। देश में हर आदमी परेशान है कि यह हुआ कैसे? कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि इतना ही आसान था तो पहले क्यों नहीं हो गया था? यह प्रश्न भी कईयों के मन में है। कश्मीर का पूरा इतिहास, आर्टिकल 370 कैसे आया, उसमें क्या प्रावधान थे, आर्टिकल 35-A कैसे आया, 1954 का राष्ट्रपति का आदेश क्या था, और फिर 2019 की पूरी प्रक्रिया क्या थी, इसे समझने के लिए हमें कालक्रम में चलना होगा।
चलिए, 1947 से शुरू करते हैं, ताकि यह पूरा प्रसंग ठीक से समझ में आए।
भारत का एकीकरण और रियासतों का विलय (1947)
यह मसला मूल रूप से भारत के एकीकरण का है। जब भारत आजाद हुआ तो इंडिया इंडिपेंडेंस एक्ट के तहत लगभग 565 रियासतें थीं। अंग्रेजों ने इन रियासतों को तीन विकल्प दिए:
- भारत का हिस्सा बन जाएं।
- पाकिस्तान का हिस्सा बन जाएं।
- स्वतंत्र रहें।
यह सरदार पटेल और वी.पी. मेनन का अभूतपूर्व काम था कि उन्होंने लगभग सभी रियासतों को भारत में मिला लिया। जो भूमिका बिस्मार्क ने जर्मनी में और गैरीबाल्डी ने इटली में निभाई, वही भूमिका पटेल ने भारत में निभाई। यदि पटेल न होते, तो आज हम दिल्ली से पटना जाने के लिए चार देशों का वीजा ले रहे होते।
पटेल का तरीका सरल था: एक हाथ में गाजर, एक में लाठी। उन्होंने राजाओं को समझाया कि आपकी जनता स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा ले चुकी है और वह आपसे भी स्वाधीन होना चाहती है। बेहतर है कि आप विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दें। पटेल ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत केवल तीन चीजें मांग रहा है: रक्षा (Defence), विदेशी संबंध (External Relations), और संचार (Communication)। बाकी सब आप संभालिए।
धमकियों और समझाने-बुझाने से लगभग सभी रियासतें मान गईं, लेकिन तीन जगह मामला फंस गया: जूनागढ़, हैदराबाद, और कश्मीर।
उस समय भारत को सिर्फ रियासतों से ही नहीं, बल्कि फ्रांस (पांडिचेरी, चंद्रनगर आदि) और पुर्तगाल (गोवा, दमन-दीव) से भी अपने क्षेत्र वापस लेने थे। यह एक बहुत मुश्किल काम था।
जूनागढ़ और हैदराबाद का विलय
जूनागढ़
जूनागढ़ की आबादी हिंदू थी, लेकिन शासक मुसलमान था। उसने 15 सितंबर, 1947 को पाकिस्तान के साथ विलय कर लिया। पटेल ने इसे मानने से इनकार कर दिया। जनता ने विद्रोह किया तो राजा पाकिस्तान भाग गया। भारत ने वहां जनमत संग्रह (Plebiscite) करवाया, जिसमें 99% से अधिक वोट भारत के पक्ष में पड़े और जूनागढ़ भारत का हिस्सा बन गया।
हैदराबाद
हैदराबाद का नवाब पाकिस्तान में मिलना चाहता था, जो भौगोलिक रूप से असंभव था। उसने नवंबर 1947 में भारत के साथ एक साल के लिए स्टैंड-स्टिल एग्रीमेंट (Standstill Agreement) किया। इस दौरान, उसके समर्थक संगठन MIM और उसके हिंसक दस्ते 'रजाकार' ने भारत समर्थक लोगों पर, विशेषकर हिंदुओं पर, अत्याचार करने शुरू कर दिए। जब स्थिति बिगड़ी तो पटेल ने नेहरू की सहमति के बिना 13 सितंबर, 1948 को सेना भेज दी। इसे 'ऑपरेशन पोलो' कहा गया। पांच दिन में हैदराबाद की सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया और हैदराबाद भारत का हिस्सा बन गया।
जम्मू-कश्मीर का जटिल मुद्दा (1947)
इन दोनों घटनाओं के बीच कश्मीर का मुद्दा सबसे जटिल रूप ले चुका था।
राजा हरि सिंह की दुविधा
कश्मीर के राजा हरि सिंह हिंदू थे, जबकि 70% से अधिक आबादी मुस्लिम थी। इस वजह से जिन्ना को लगता था कि कश्मीर पाकिस्तान का होगा। राजा हरि सिंह की दुविधा यह थी:
- भारत में विलय: उन्हें डर था कि नेहरू लोकतंत्र के समर्थक हैं, जिससे उनकी राजशाही खत्म हो जाएगी और सत्ता शेख अब्दुल्ला के हाथ में चली जाएगी, जिन्हें उन्होंने जेल में डाल रखा था।
- पाकिस्तान में विलय: उन्हें डर था कि एक इस्लामी शासन में हिंदू राजा नहीं चल पाएगा।
- स्वतंत्र रहना: वह राजा बने रहना चाहते थे, लेकिन यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं था।
शेख अब्दुल्ला और नेशनल कॉन्फ्रेंस
उस समय कश्मीर घाटी में शेख अब्दुल्ला सबसे लोकप्रिय नेता थे। वे समाजवादी और सेक्युलर थे और मुस्लिम लीग से नफरत करते थे। उनका आंदोलन राजा हरि सिंह के खिलाफ था। वे नेहरू के मित्र भी थे, क्योंकि दोनों के विचार मिलते-जुलते थे।
पाकिस्तान का कबायली हमला
पाकिस्तान ने सोचा कि सीधा सैन्य हमला करने से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी होगी। इसलिए, 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना के समर्थन से 'आजाद कश्मीर फौज' के नाम पर कबायली लड़ाकों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। हरि सिंह की सेना के कई मुस्लिम सैनिकों ने भी हमलावरों का साथ दिया।
यह सेना तेजी से मुजफ्फराबाद और उरी तक पहुंच गई। ब्रिगेडियर राजेंद्र सिंह ने उरी का पुल उड़ाकर हमलावरों को दो दिनों के लिए रोक दिया, लेकिन वे शहीद हो गए। इन दो दिनों ने ही कश्मीर को बचाया। इसके बाद हमलावर बारामूला पहुंचे और वहां उन्होंने भयानक लूटपाट, हत्याएं और बलात्कार किए, जिसमें हिंदू, ईसाई और मुस्लिम औरतें भी शामिल थीं।
विलय पत्र पर हस्ताक्षर और भारतीय हस्तक्षेप
26 अक्टूबर, 1947 को जब हमलावर श्रीनगर से केवल 50 किलोमीटर दूर थे, तब राजा हरि सिंह ने जम्मू से विलय पत्र (Instrument of Accession) पर हस्ताक्षर कर दिए। यह वही विलय पत्र था जिस पर बाकी 565 रियासतों ने हस्ताक्षर किए थे, इसकी भाषा में कोई अंतर नहीं था।
हस्ताक्षर के बाद, माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर, 1947 को इसे स्वीकार किया। माउंटबेटन ने यह शर्त रखी कि शांति स्थापित होने के बाद जनमत संग्रह करवाया जाना चाहिए। 27 अक्टूबर की सुबह भारतीय सेना श्रीनगर पहुंची और शेख अब्दुल्ला के समर्थकों ने उनका स्वागत किया।
जिन्ना ने अपनी सेना को हमला करने का आदेश दिया, लेकिन ब्रिटिश कमांडर-इन-चीफ ने यह कहकर मना कर दिया कि यह एक अंतरराष्ट्रीय युद्ध होगा, क्योंकि कश्मीर अब कानूनी रूप से भारत का हिस्सा है।
नेहरू का जनमत संग्रह का वादा
2 नवंबर, 1947 को नेहरू जी ने एक भाषण में वादा किया कि शांति स्थापित होने पर कश्मीर में जनमत संग्रह करवाया जाएगा। यह एक टर्निंग पॉइंट था। मेरा मानना है कि नेहरू जी आदर्शवादी थे और उन्हें लगता था कि शेख अब्दुल्ला के प्रभाव के कारण जनमत संग्रह भारत के पक्ष में ही आएगा।
संयुक्त राष्ट्र (UN) का हस्तक्षेप और संकल्प
दिसंबर 1947 में भारत यह मामला संयुक्त राष्ट्र में ले गया। 21 अप्रैल, 1948 को UN ने एक संकल्प पारित किया, जिसके तीन मुख्य हिस्से थे:
- सीजफायर (Ceasefire): युद्धविराम, जो 1 जनवरी, 1949 को लागू हुआ और LOC (Line of Control) का निर्धारण हुआ।
- ट्रूस एग्रीमेंट (Truce Agreement): इसमें तीन शर्तें थीं:
- पहले पाकिस्तान अपनी सेना और कबायलियों को कश्मीर से हटाएगा।
- जब UN आयोग पुष्टि कर देगा कि पाकिस्तान ने ऐसा कर दिया है, तब भारत अपनी सेना का बड़ा हिस्सा हटाएगा।
- इसके बाद जनमत संग्रह कराया जाएगा।
- अन्य बातें: अंतिम फैसला जनता की इच्छा से होगा।
हमारा स्टैंड स्पष्ट है कि क्योंकि पाकिस्तान ने कभी पहली शर्त पूरी नहीं की, इसलिए जनमत संग्रह का सवाल ही नहीं उठता।
अनुच्छेद 370 का निर्माण और प्रावधान
1949 में, भारत की संविधान सभा अपना काम पूरा कर रही थी। शेख अब्दुल्ला सहित कश्मीर के चार प्रतिनिधियों को संविधान सभा में शामिल किया गया। सभी की सहमति से ड्राफ्ट अनुच्छेद 306-A बनाया गया, जो अंतिम संविधान में अनुच्छेद 370 बना।
अनुच्छेद 370 के प्रमुख प्रावधान
यह संविधान के भाग 21 में था, जिसका शीर्षक था "अस्थाई व संक्रमणकालीन उपबंध" (Temporary and Transitional Provisions), जो यह दर्शाता है कि यह एक स्थायी व्यवस्था नहीं थी।
- अनुच्छेद 370(1)(a): यह कहता था कि अनुच्छेद 238 जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होगा। (यह अनुच्छेद 'भाग बी' के राज्यों से संबंधित था, जिसे 1956 में हटा दिया गया, इसलिए यह प्रावधान अर्थहीन हो गया था)।
- अनुच्छेद 370(1)(b): भारतीय संसद केवल रक्षा, विदेशी मामले और संचार से संबंधित विषयों पर ही कानून बना सकती है। अन्य विषयों के लिए राज्य सरकार की सहमति (Concurrence) आवश्यक होगी।
- अनुच्छेद 370(1)(c): भारतीय संविधान का केवल अनुच्छेद 1 और अनुच्छेद 370 ही जम्मू-कश्मीर पर सीधे लागू होंगे।
- अनुच्छेद 370(1)(d): अन्य कोई भी अनुच्छेद लागू करने के लिए राष्ट्रपति को आदेश जारी करना होगा, जिसके लिए राज्य सरकार की सहमति चाहिए होगी।
- अनुच्छेद 370(2): राज्य सरकार द्वारा दी गई कोई भी सहमति अंतिम रूप से जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा द्वारा स्वीकृत की जानी थी।
- अनुच्छेद 370(3): इस अनुच्छेद को हटाने के लिए राष्ट्रपति को एक आदेश जारी करना होगा, लेकिन यह आदेश केवल जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिश (Recommendation) पर ही जारी किया जा सकता था।
चूंकि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा 1957 में भंग हो गई थी, इसलिए कई कानूनविदों का मानना था कि अब अनुच्छेद 370 को हटाया ही नहीं जा सकता।
अनुच्छेद 35-A का रहस्य
1952 में नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच दिल्ली समझौता हुआ, जिसमें स्थायी निवासियों और उनके अधिकारों पर सहमति बनी। इसी के आधार पर, 1954 में राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370(1)(d) का उपयोग करके एक आदेश जारी किया। इसी आदेश के माध्यम से अनुच्छेद 35-A को संविधान में जोड़ा गया, लेकिन यह संविधान की किताब में कभी नहीं छपा।
अनुच्छेद 35-A के प्रावधान
- स्थायी नागरिक (Permanent Resident): यह तय करने का अधिकार राज्य की विधानसभा को दिया गया।
- विशेष अधिकार: केवल स्थायी नागरिक ही राज्य में जमीन खरीद सकते थे, सरकारी नौकरी पा सकते थे और आरक्षण का लाभ ले सकते थे।
- लैंगिक भेदभाव: यदि कोई कश्मीरी महिला राज्य के बाहर किसी व्यक्ति से शादी करती थी, तो वह और उसके बच्चे संपत्ति और अन्य अधिकारों से वंचित हो जाते थे। (हालांकि, 2002 में J&K हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था)।
1953 के बाद का घटनाक्रम और एकीकरण की प्रक्रिया
1953 में शेख अब्दुल्ला को राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के आरोप में बर्खास्त कर दिया गया और वे लगभग 20 साल तक नजरबंद रहे। इसके बाद केंद्र ने धीरे-धीरे भारतीय कानूनों को कश्मीर पर लागू करना शुरू कर दिया।
- 1959: भारत के चुनाव आयोग को वहां चुनाव कराने की शक्ति दी गई।
- 1964: अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) को लागू किया गया।
- 1965: 'सदर-ए-रियासत' का नाम 'राज्यपाल' और 'वजीर-ए-आजम' का नाम 'मुख्यमंत्री' कर दिया गया।
- 1975: इंदिरा-शेख समझौते के बाद शेख अब्दुल्ला फिर से मुख्यमंत्री बने।
1987 के चुनाव में धांधली के आरोपों के बाद वहां उग्रवाद बढ़ा और 1990 में AFSPA लागू करना पड़ा।
5 अगस्त, 2019: अनुच्छेद 370 का अंत
यह प्रक्रिया बहुत ही सुनियोजित और जटिल थी, जो कम से कम दिसंबर 2018 से चल रही थी।
पृष्ठभूमि
जून 2018 में बीजेपी-पीडीपी सरकार गिरने के बाद, पहले राज्यपाल शासन (J&K संविधान के अनुच्छेद 92 के तहत) और फिर 19 दिसंबर, 2018 को राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) लगाया गया। राष्ट्रपति शासन की घोषणा में यह स्पष्ट लिखा गया कि राज्य के विधानमंडल की शक्तियां संसद के पास होंगी।
कानूनी प्रक्रिया: एक के बाद एक कदम
- पहला कदम (राष्ट्रपति का आदेश C.O. 272): 5 अगस्त की सुबह, राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 370(1)(d) का प्रयोग कर एक आदेश जारी किया। इस आदेश ने 1954 के आदेश को खत्म कर दिया, जिससे अनुच्छेद 35-A स्वतः समाप्त हो गया। इसी आदेश में अनुच्छेद 367 (व्याख्या खंड) में एक नया क्लॉज जोड़कर यह लिख दिया गया कि "अनुच्छेद 370(3) में 'संविधान सभा' का अर्थ 'विधानसभा' पढ़ा जाएगा।"
- दूसरा कदम (संकल्प): अब 'संविधान सभा' का मतलब 'विधानसभा' हो गया था, और राष्ट्रपति शासन के कारण 'विधानसभा' का मतलब 'संसद' था। इसलिए, सरकार ने संसद में अनुच्छेद 370(3) के तहत एक संकल्प पेश किया, जिसमें राष्ट्रपति से अनुच्छेद 370 को हटाने की सिफारिश की गई। संसद ने इसे पारित कर दिया।
- तीसरा कदम (पुनर्गठन विधेयक): जैसे ही 370 अप्रभावी हुआ, अनुच्छेद 3 भी पूरी तरह लागू हो गया, जिसके तहत राज्य के पुनर्गठन से पहले विधानसभा की राय जरूरी थी। क्योंकि विधानसभा की शक्ति संसद के पास थी, इसलिए संसद ने दूसरा संकल्प पारित कर पुनर्गठन की राय दी और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक, 2019 पेश किया।
इस विधेयक के तहत जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया: लद्दाख (बिना विधानसभा के) और जम्मू-कश्मीर (विधानसभा के साथ)। साथ ही, IPC, RTI, RTE जैसे 106 केंद्रीय कानून वहां लागू कर दिए गए।
निष्कर्ष: सही या गलत?
यह अच्छा हुआ या बुरा, यह देखने के नजरिए पर निर्भर करता है। मेरा व्यक्तिगत मत है कि एक झटके में होने के कारण यह चुभने वाला हो सकता है, लेकिन लंबे समय में देश की एकता के लिए यह ठीक होगा। इतिहास में हैदराबाद, गोवा और सिक्किम का विलय भी बहुत प्यार से नहीं हुआ था। कई बार एक देश को एक रखने के लिए कड़े फैसले लेने पड़ते हैं। जनमत संग्रह की शर्तें कभी पूरी होने वाली नहीं थीं, क्योंकि पाकिस्तान कभी भी PoK से अपनी सेना नहीं हटाता। लंबे इतिहास में यह चीज नजर नहीं आएगी; नजर सिर्फ यही आएगा कि देश में अब 28 राज्य और 8 केंद्र शासित प्रदेश हैं।
Disclaimer
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Source Link: Article 370 & 35-A : Jammu-Kashmir (1947 to 2019) by Dr. @vikasdivyakirti