Res Gestae

रेस जेस्टे (Res Gestae)

रेस जेस्टे (Res Gestae) (परिस्थितिजन्य साक्ष्य) एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ होता है "घटना से जुड़े तथ्य" या "घटना के साथ ही घटित होने वाले तथ्य।" यह सिद्धांत भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) की धारा 6 में उल्लिखित है। इस सिद्धांत के तहत, किसी घटना से जुड़े हुए और उसी समय हुए कार्यों, कथनों या परिस्थितियों को स्वीकार्य साक्ष्य माना जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य न्यायालय को घटना की वास्तविकता का पूरा चित्र प्रस्तुत करना है।


रेस जेस्टे का अर्थ

रेस जेस्टे के तहत वे कथन, कार्य या परिस्थितियाँ आती हैं जो किसी मुख्य घटना से सीधे जुड़ी होती हैं और उसी के समय या तुरंत बाद घटित होती हैं। यह सिद्धांत इस धारणा पर आधारित है कि ऐसे बयान या कार्य स्वाभाविक होते हैं और इन्हें गढ़ा नहीं जा सकता।


रेस जेस्टे का कानूनी आधार (धारा 6, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872)

धारा 6 के अनुसार:

"कोई भी तथ्य, जो किसी प्रासंगिक तथ्य या मुख्य तथ्य के साथ इस प्रकार जुड़ा हुआ हो कि वह घटना की प्रक्रिया का हिस्सा हो, वह प्रासंगिक है।"

यह धारा घटना के घटित होने के समय और उससे जुड़ी परिस्थितियों पर आधारित साक्ष्य को स्वीकार करने की अनुमति देती है।


रेस जेस्टे के प्रमुख तत्व

रेस जेस्टे के तहत किसी तथ्य को स्वीकार्य साक्ष्य के रूप में मान्यता देने के लिए निम्नलिखित शर्तें पूरी होनी चाहिए:

  1. मुख्य घटना से सीधा संबंध:
    तथ्य मुख्य घटना का हिस्सा होना चाहिए और उससे संबंधित होना चाहिए।

  2. समय और स्थान:
    तथ्य घटना के समय या उसके तुरंत बाद हुआ हो।

  3. स्वाभाविकता और स्वतःस्फूर्तता:
    तथ्य स्वाभाविक और स्वतःस्फूर्त होना चाहिए। इसमें गढ़ा हुआ या पूर्व नियोजित बयान शामिल नहीं होना चाहिए।

  4. कोई मध्यस्थ हस्तक्षेप नहीं:
    मुख्य घटना और रेस जेस्टे तथ्य के बीच कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।


परिस्थितिजन्य साक्ष्य के उदाहरण

  1. हत्याकांड का मामला:
    यदि कोई व्यक्ति हत्या होते हुए देखता है और तुरंत कहता है, "वह व्यक्ति हत्या कर रहा है," तो यह बयान रेस जेस्टे के तहत स्वीकार्य होगा।

  2. दुर्घटना का मामला:
    एक सड़क दुर्घटना के तुरंत बाद कोई व्यक्ति चिल्लाता है, "उस ट्रक ने कार को टक्कर मारी," तो यह बयान घटना का हिस्सा माना जाएगा।

  3. आगजनी का मामला:
    यदि किसी इमारत में आग लगने के समय लोग चिल्लाते हैं, "यह आग शॉर्ट सर्किट से लगी है," तो यह बयान रेस जेस्टे के तहत आएगा।


रेस जेस्टे के लाभ और महत्व

  1. घटना का पूर्ण विवरण:
    यह न्यायालय को घटना के सही और पूर्ण विवरण को समझने में मदद करता है।

  2. विश्वसनीयता:
    चूँकि रेस जेस्टे के बयान घटना के समय या तुरंत बाद दिए जाते हैं, इसलिए उनके गढ़े होने की संभावना कम होती है।

  3. प्रक्रिया की सरलता:
    रेस जेस्टे साक्ष्य न्यायालय की प्रक्रिया को तेज और सरल बनाता है।


रेस जेस्टे की सीमाएँ

  1. स्वाभाविकता की कमी:
    यदि बयान या कार्य स्वाभाविक और स्वतःस्फूर्त नहीं है, तो इसे रेस जेस्टे के तहत स्वीकार नहीं किया जा सकता।

  2. समय का अंतराल:
    घटना और बयान के बीच अत्यधिक समय होने पर इसे रेस जेस्टे नहीं माना जाएगा।

  3. पूर्व नियोजन:
    यदि यह साबित हो जाए कि बयान या कार्य पूर्व नियोजित था, तो यह रेस जेस्टे के तहत मान्य नहीं होगा।


महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

  1. रतनलाल बनाम राजस्थान राज्य (1959):
    इस मामले में यह निर्णय दिया गया कि किसी घटना के समय या तुरंत बाद किए गए बयान रेस जेस्टे के तहत स्वीकार्य हैं।

  2. कृष्णन बनाम राज्य (1955):
    इस मामले में कहा गया कि रेस जेस्टे के बयान तभी मान्य हैं जब वे घटना के समय या उसके तुरंत बाद दिए गए हों।

  3. सुकरी देव बनाम बिहार राज्य:
    इस मामले में कहा गया कि घटना के समय दिया गया बयान अगर स्वाभाविक है तो उसे साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जा सकता है।


निष्कर्ष

रेस जेस्टे (परिस्थितिजन्य साक्ष्य)का सिद्धांत न्यायिक प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह न्यायालय को घटना के सटीक और प्रामाणिक चित्र को समझने में सहायता करता है। हालाँकि, इसे लागू करने में सावधानी बरतनी चाहिए ताकि केवल प्रासंगिक और विश्वसनीय साक्ष्यों को ही स्वीकार किया जा सके। न्यायालय को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि रेस जेस्टे के तहत आने वाले बयान या कार्य स्वाभाविक, स्वतःस्फूर्त और मुख्य घटना से सीधे जुड़े हुए हों।

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