Admission and Relevance of Evidence

Admission and Relevance of Evidence 

परिचय
न्यायिक प्रक्रिया में सबूतों (Evidence) का अत्यधिक महत्व है। सबूतों के आधार पर ही न्यायालय यह तय करता है कि कौन सही है और कौन गलत। सबूतों को न्यायालय में स्वीकार (Admission) करने और उनकी प्रासंगिकता (Relevance) का निर्धारण करने के लिए कानून में विशेष प्रावधान हैं। यह लेख इस विषय के विस्तृत पहलुओं, न्यायिक दृष्टिकोण और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (Indian Evidence Act, 1872) के प्रावधानों पर केंद्रित है।


1. सबूतों की परिभाषा और प्रकार

भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 3 के अनुसार, सबूत वे तथ्य हैं जो किसी मामले के सत्यापन के लिए प्रस्तुत किए जाते हैं। सबूत मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं:

  1. मौखिक सबूत (Oral Evidence): जो गवाहों के बयानों के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं।
  2. दस्तावेजी सबूत (Documentary Evidence): लिखित दस्तावेज या डिजिटल रिकॉर्ड।

2. Admission of Evidence (सबूतों की स्वीकृति)

सबूतों की स्वीकृति का अर्थ है कि न्यायालय उन्हें सुनवाई के लिए स्वीकार करे। यह प्रक्रिया निम्न कारकों पर निर्भर करती है:

  1. स्वीकृति की शर्तें:

    • सबूत को वैध रूप से प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
    • वह संबंधित पक्ष के मामले से जुड़ा होना चाहिए।
  2. स्वीकृति के नियम:

    • धारा 5: केवल प्रासंगिक सबूतों को ही न्यायालय स्वीकार करेगा।
    • धारा 17: Admission किसी भी बयान, दस्तावेज़ या मौखिक कथन के रूप में हो सकता है।
  3. गैर-स्वीकृत सबूत:

    • यदि सबूत किसी कानून का उल्लंघन करके प्राप्त किया गया हो, तो इसे अस्वीकार किया जा सकता है।

3. Relevance of Evidence (सबूतों की प्रासंगिकता)

सबूत की प्रासंगिकता का अर्थ है कि वह मामला जिन तथ्यों पर आधारित है, उनसे उसका सीधा संबंध हो।

  1. प्रासंगिकता के नियम:

    • धारा 6: Res gestae (तथ्यों की श्रृंखला) से जुड़े सबूत प्रासंगिक माने जाते हैं।
    • धारा 7: वे तथ्य जो घटना का कारण या परिणाम हैं, प्रासंगिक हैं।
    • धारा 8: इरादे, दुश्मनी, या तैयारी से जुड़े तथ्य।
    • धारा 9: पहचान और उद्देश्य के लिए उपयोगी तथ्य।
  2. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष सबूत:

    • प्रत्यक्ष सबूत (Direct Evidence): जो तथ्य सीधे घटना को प्रमाणित करते हैं।
    • अप्रत्यक्ष सबूत (Circumstantial Evidence): जो स्थिति या घटनाओं के आधार पर अनुमानित हैं।
  3. अस्वीकार्य सबूत:

    • अवैध रूप से प्राप्त सबूत।
    • हियरसे (सुनी-सुनाई बात) सबूत, जब तक कि वे विशेष परिस्थितियों में न आते हों।

4. Admission और Relevance के बीच संबंध

Admission और Relevance का आपस में घनिष्ठ संबंध है। प्रासंगिक सबूतों को ही अदालत में प्रस्तुत किया जा सकता है, और वे ही स्वीकार्य माने जाते हैं। लेकिन सभी स्वीकार्य सबूत प्रासंगिक नहीं हो सकते।
उदाहरण: किसी व्यक्ति का पूर्व आचरण हमेशा मामले से संबंधित नहीं हो सकता।


5. न्यायालय का दृष्टिकोण

भारतीय न्यायालयों ने विभिन्न मामलों में सबूतों की स्वीकृति और प्रासंगिकता पर निर्णय दिए हैं:

  1. Pakala Narayana Swami v. Emperor (1939): न्यायालय ने कहा कि केवल वे ही तथ्य प्रासंगिक हैं जो सीधे मामले को प्रभावित करते हैं।
  2. State of U.P. v. Deoman Upadhyay (1960): सबूत की स्वीकृति पर न्यायालय ने कहा कि न्याय की प्रक्रिया में निष्पक्षता महत्वपूर्ण है।

6. आधुनिक दृष्टिकोण: डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक सबूत

डिजिटल युग में इलेक्ट्रॉनिक सबूतों की प्रासंगिकता और स्वीकृति बढ़ गई है।

  • धारा 65B: इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को प्रमाणित करके प्रस्तुत करना आवश्यक है।
  • Case Law: Arjun Panditrao Khotkar v. Kailash Kushanrao Gorantyal (2020) में सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक सबूतों के प्रमाणन के महत्व को स्पष्ट किया।

7. निष्कर्ष

Admission और Relevance of Evidence न्यायिक प्रक्रिया के दो महत्वपूर्ण स्तंभ हैं। यह न्यायालय की जिम्मेदारी है कि वह केवल प्रासंगिक और वैध सबूतों को ही स्वीकार करे। इसके लिए भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 में पर्याप्त प्रावधान हैं। न्याय की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए इन नियमों का पालन अनिवार्य है।

इस प्रकार, सबूतों की स्वीकृति और उनकी प्रासंगिकता का सही मूल्यांकन न्यायालय को निष्पक्ष और त्वरित न्याय प्रदान करने में सहायता करता है।

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