Sec 311 Crpc

धारा 311, दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973

यह धारा अदालत को किसी भी चरण में साक्ष्य लेने या किसी गवाह को तलब करने का अधिकार देती है, यदि न्याय के हित में ऐसा करना आवश्यक हो। धारा 311 का मुख्य उद्देश्य न्याय सुनिश्चित करना है, न कि तकनीकीता के आधार पर किसी पक्ष को नुकसान पहुंचाना।

Sec 311 Crpc  हिंदी में:

“किसी भी समय कोई भी अदालत किसी भी व्यक्ति को, जो प्रकट हो कि उस समय उपस्थित नहीं है और जिसकी गवाही किसी भी मामले के न्यायसंगत निर्णय के लिए आवश्यक प्रतीत होती है, तलब कर सकती है और किसी भी व्यक्ति को, जो पहले ही गवाही दे चुका है, पुनः जिरह के लिए बुला सकती है।”

महत्वपूर्ण बिंदु:

  1. अदालत को दो प्रकार की शक्तियां मिलती हैं:
    • किसी गवाह को तलब करना।
    • किसी गवाह की पुन: जिरह करना।
  2. यह शक्ति न्यायहित के लिए दी गई है, ताकि सत्य को उजागर किया जा सके।

महत्वपूर्ण निर्णय (Case Study):

1. Zahira Habibullah Sheikh v. State of Gujarat (2004)

मामला: यह मामला "बेस्ट बेकरी केस" के नाम से जाना जाता है।
तथ्य: गवाहों के बयान अदालत में बदल गए थे। सत्यता की तलाश में, सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि सभी गवाहों को पुनः बुलाना और उनके बयान दर्ज करना आवश्यक था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने धारा 311 के तहत न्यायालय की भूमिका पर जोर दिया और कहा कि गवाहों को तलब करना सत्य को प्रकट करने के लिए न्यायहित में आवश्यक है।

2. Natasha Singh v. CBI (2013)

तथ्य: अपीलकर्ता ने न्यायालय से एक अतिरिक्त गवाह को तलब करने का अनुरोध किया था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 311 न्यायालय को व्यापक अधिकार देती है और इसका उद्देश्य न्याय करना है।

धारा 311 का महत्व:

  • यह न्याय सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण साधन है।
  • गवाह की अनुपस्थिति या गलतफहमी से जो न्याय बाधित हो सकता है, उसे ठीक करने का उपाय है।
  • इसका प्रयोग न्यायालय को अत्यंत विवेकपूर्ण और न्यायपूर्ण तरीके से करना चाहिए।

सीमाएं:

  • इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए।
  • केवल मुकदमे में देरी करने के उद्देश्य से गवाह तलब नहीं किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष:

धारा 311 CrPC भारतीय न्याय प्रणाली में न्यायाधीश को निष्पक्ष न्याय प्रदान करने के लिए अत्यधिक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण प्रावधान प्रदान करती है। इसका सही और विवेकपूर्ण उपयोग न्याय के हित में आवश्यक है।

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